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लखनऊ के शरद ने बदली भिखारियों की जिंदगी

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लखनऊ
सड़क पर
जब हमसे कोई भीख मांगता है तो तरस खाकर अक्सर हम उसे कुछ पैसे थमा देते हैं। लेकिन करीब छह साल पहले हरदोई के शरद पटेल के सामने जब 50 साल के एक भिखारी ने हाथ फैलाया तो उन्हें जैसे जिंदगी का मकसद मिल गया। दो दिन से भूखे उस भिखारी ने कुछ खाने के लिए 10 रुपये मांगे तो शरद ने उसे 20 रुपये की पूड़ी-कचौड़ी खिला दी। शरद घर लौट आए, लेकिन उनके मन में उस भिखारी का चेहरा घूमता रहा। उनके मन में विचार आया कि अगर भिखारी को एक कटोरा चावल खाने को दिया जाए तो उसकी एक पहर की भूख मिटेगी, लेकिन अगर एक कटोरा चावल पैदा करना सिखा दें तो वह हमेशा के लिए आत्मनिर्भर बन जाएगा। बस यही छोटा-सा आइडिया पटेल के जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया। वह भिखारियों को रोजगार पर लगाने की मुहिम में जुट गए। तब से अब तक वह सवा सौ से ज्यादा भिखारियों को आत्मनिर्भर बना चुके हैं और यह मुहिम जारी है।

शरद इस वक्त लखनऊ में भिखारियों के लिए जो काम कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें जबर्दस्त मेहनत करनी पड़ी है। सबसे पहले शरद ने यह डेटा जुटाया कि शहर में कितने भिखारी हैं। इसके बाद उन्होंने आरटीआई से बेगर्स होम की जानकारी निकलवाई। पता चला कि यूपी में 8 बेगर्स होम हैं, लेकिन वे खंडहर में तब्दील हो चुके हैं और इनमें एक भी भिखारी नहीं रह रहा। उन्हें पता चला कि इन पर 40 लाख मंथली खर्च हो रहा है, लेकिन भिखारी सड़कों पर मर रहे हैं।

...और कारवां बनता गया
2014 में अपने साथी महेंद्र और जयदीप के साथ मिलकर शरद ने भिखारियों के कल्याण के लिए काम करना शुरू किया। इन्होंने मुहिम का नाम रखा भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान और शरद इसके संयोजक बने। बाद में इन्होंने 'बदलाव' संस्था की नींव रखी। शरद बताते हैं कि उन्होंने एक साल तक भिखारियों के साथ बेहतर संबंध बनाने पर काम किया। यह बेहद कठिन टास्क था क्योंकि ज्यादातर भिखारी भीख मांगना छोड़कर काम करना नहीं चाह रहे थे, नशे के आदी थे और समाज की मुख्यधारा से कट चुके थे।

खैर, उन्हें पहली सफलता तब मिली जब दो भिखारी इस बात के लिए तैयार हो गए कि वे भीख मांगना छोड़ देंगे। उन दो भिखारियों से प्रेरित होकर 9 और भिखारियों ने भीख मांगनी छोड़ दी तो लगा कि मुहिम रंग ला रही है। इस तरह अब तक शरद की मेहनत से 129 भिखारी भीख मांगना छोड़ चुके हैं। इनमें से 55 वयस्क भिखारी छोटा-मोटा रोजगार कर रहे हैं। इनमें से 74 अवयस्क भिखारियों को लखनऊ के ही दुबग्गा इलाके में 'बदलाव पाठशाला' में पढ़ाया जा रहा है ताकि वे बेहतर नागरिक बन सके।


चुनौतियों से साबका
बड़ी बात यह है शरद और उनसे साथियों ने किसी को भी जबरदस्ती भीख मांगना नहीं छुड़वाया। भिखारी भीख मांगना छोड़े, इसके लिए बिहेवियरल थेरपी की मदद ली गई। थेरपी ने भिखारियों का नजरिया बदला, उनमें काम करने की इच्छाशक्ति पैदा की। ज्यादातर भिखारी नशे के आदी थे। अपना खून बेचकर नशा करते थे। नशा छुड़वाने के लिए इनकी काउंसलिंग की गई। जब ये भिखारी रोजगार में लगे और पैसा कमाने लगे तो एक और दिक्कत सामने आई। चूंकि इनके पास रहने और सोने का कोई ठिकाना नहीं था इसलिए वे कहीं भी सो जाते थे। ऐसे में रात में चोर इनका पैसा और सामान चुरा लेते थे। इस के लिए शरद पटेल को लंबा संघर्ष करना पड़ा तब जाकर अस्थायी शेल्टर होम की व्यवस्था हो पाई।
अब शरद ज्यादातर समय शेल्टर होम पर भिखारियों के साथ रहते और सोते भी हैं ताकि उनकी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझ सकें।

ताकि फिर से न जाए पुराने धंधे में
भीख मांगना छोड़ चुके इन लोगों को वापस पुराने धंधे में जाने से रोकना और नशे से दूर रखना बड़ी चुनौती है। इसके लिए उन्हें पूरे वक्त बिजी रखा जाता है। यहां सभी के लिए पूरे दिन का रुटीन चार्ट बना हुआ है और सबके काम बंटे हैं। सुबह उठकर कुछ लोग सफाई करते हैं, कुछ दूध वगैरह लेने जाते हैं। चाय, नाश्ता बनाते हैं और फिर सब काम पर निकल जाते हैं। वे फिर शाम में आकर शेल्टर होम के काम देखते हैं, आराम करते हैं और रात में खाने के बाद इनकी रोज चौपाल लगती है। इस चौपाल में इन्हें समाज की दूसरी समस्याओं और समाधान से रूबरू करवाया जाता है। रविवार को ये लोग किसी सामाजिक समस्या पर काम करते हैं। शरद की टीम ने भिखारियों से बात करके समाज की 12 समस्याएं चिह्नित की हैं जिन पर पूरे साल काम होगा। हर महीने एक समस्या पर फोकस किया जाएगा। इस सिलसिले में पिछले दिनों इन्होंने हर संडे गोमती सफाई का अभियान चलाया था।

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