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'पैडवुमन' पद्मिनी, जज्बे को आप करेंगे सलाम

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आरिफ बेग, उन्नाव
यूपी के उन्नाव जिले के हसनगंज कस्बे में पिछले कुछ महीनों से अजीब से नजारे देखने में आते हैं। कोई महिला कस्बे की पद्मिनी से बात कर रही हो और कुछ दूर कोई मर्द दिख जाए तो वे चली जाती हैं। पद्मिनी की बातें सुनकर वे हंसती हैं, लेकिन जवाब नहीं देतीं। वजह कुछ और नहीं, टूटती सामाजिक वर्जनाएं हैं। उन्नाव की पैडवुमन ने गांव में ही सैनिटरी पैड की फैक्ट्री लगाकर रूढ़ियों को चुनौती जो दी है।

पति ने दिया साथ
बरेली से एमएससी कर चुकी पद्मिनी की शादी 2008 में हसनगंज कस्बे के ओमप्रकाश से हुई थी। पति-पत्नी ने एक-दूसरे को हर मौके पर समर्थन दिया। ओमप्रकाश ने काम के लिए कॉमन सर्विस सेंटर खोला। इस बीच दिल्ली में एक सेमिनार में शामिल होने के बाद महिलाओं की बेहतरी के लिए पद्मिनी ने सैनिटरी पैड की फैक्ट्री लगाने के बारे में सोचा। पति ओमप्रकाश को इस बारे में बताया तो वह इसे मजाक समझ बैठे, लेकिन पत्नी के मजबूत इरादे ने उन्हें भी सोचने को मजबूर कर दिया।

आठ लोगों को दिया रोजगार
दंपती ने सरकारी स्कीम के तहत काम शुरू करने के लिए 2.94 लाख रुपये जमा कराए। चार मशीनों के साथ उन्हें पैड बनाने की ट्रेनिंग मिली। पिछले कुछ महीनों से सैनिटरी पैड बनाने का काम शुरू किया। फिलहाल उनके यहां 8 लोगों की रोजगार मिल रहा है। अभी वे स्कूलों में बच्चियों को पैड देकर जागरूक कर रही हैं।

रूढ़िवादी सोच से ले रहीं टक्कर

पद्मिनी ने गांव की महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पैड के इस्तेमाल के लिए समझाना शुरू किया, लेकिन कोई इस पर बात तक करने को तैयार नहीं था। बकौल पद्मिनी, कई महिलाएं धीरे से कहती थीं कि हम तो जमाने से कपड़े का प्रयोग कर रहे हैं। इसके इस्तेमाल से क्या होगा। उन्हें कपड़े के इस्तेमाल से संक्रमण और अन्य समस्याओं के बारे में बताया, लेकिन कुछ नहीं बदला। काफी महिलाओं ने तो इस वजह से बात तक करना बंद कर दिया। वह बताती हैं, 'मैं जब नई उम्र की लड़कियों से जब वह कस्बे की गलियों में बात करती, तो वे दूर से ही किसी मर्द को देख झिझकतीं और चली जातीं।'

हालांकि इस कवायद में कई महिलाओं को समझाने में कामयाबी भी मिली। महिलाओं की इस झिझक को तोड़ने के लिए पद्मिनी स्कूलों में जाकर लड़कियों को सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के लिए जागरूक करती हैं। पद्मिनी का कहना है कि महिलाएं धीरे-धीरे अपने स्वास्थ्य के लिए जागरूक हो रही हैं।

राह में आ रहीं कई मुश्किलें

फिलहाल कम उत्पादन के कारण कई बार माल की लागत भी नहीं निकल रही है, लेकिन दंपती के हौसले पर इससे फर्क नहीं पड़ रहा। ओमप्रकाश कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा में बड़ी कंपनियों से कड़ी चुनौती मिलती है, लेकिन हम अपने मिशन में जरूर कामयाब होंगे।

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