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जेब में उस्तरा रख यह शख्स कर रहा अनूठी 'सेवा'

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संतोषी दास
मैले-कुचैले कपड़े, स‍िर के बढ़े बाल, शरीर से आती बदबू और सड़क के क‍िनारे गुमसुम बैठे लोगों को अक्‍सर आप पागल समझते हैं। कई बार आपने उन्‍हें दुत्‍कारा भी होगा। मगर गोरखपुर के रहने वाले आजाद पांडेय उनके साथ बैठते हैं। हंसी-ठ‍िठोली करते हैं और उनके द‍िल की बातें सुनते हैं। ऐसा इसल‍िए कि पागलों जैसे द‍िखने वालों की ज‍िंदगी संवार सकें। लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी और इलाहाबाद की सड़कों पर गुमनामी के अंधेरे में खो गए ऐसे लोगों की सूरत और सीरत बदलने के ल‍िए वह अपने साथ हमेशा एक उस्‍तरा रखते हैं। उनका मकसद है 'पागलों' का 'इंसानों' से र‍िश्‍ता जुड़ सके।

आजाद पांडेय कहीं भी निकलते हैं, अपने बैग में उस्‍तरा और कुछ कपड़े जरूर रखते हैं। उनका सामना अक्‍सर ही ऐसे लोगों से होता है इसके बाद तो उस इंसान के बाल काटने से लेकर उनको नहलाने का काम शुरू होता है। पागलों को इंसान बनाने के ल‍िए सबसे पहले वह उनके बाल काटते हैं। यह काम किसी नाई से नहीं कराते, बल्कि खुद करते हैं।

पागलों के ल‍िए बाल काटना सीखा
आजाद पांडेय ने बताया कि जब उन्‍हें सड़कों पर धूल-म‍िट्टी से सने लोग म‍िलते थे तो उनका हुल‍िया सुधारने के ल‍िए बड़ी समस्‍या आती थी। कोई नाई उनके बाल काटने का राजी नहीं होता था। इस परेशानी से उबरने के ल‍िए मैंने खुद ही बाल काटना सीखा ल‍िया और अब तो मैं उस्‍तरा साथ लेकर चलता हूं।

नहीं होते हैं पागल
आजाद ने बताया कि अक्‍सर लोग सड़कों पर घूमने वाले लोगों को पागल समझ बैठते हैं मगर वह हकीकत में पागल नहीं होते। उनमें से अधिकतर घर से झगड़कर तो कभी कोई इलाज कराने पर‍िजनों के साथ दूसरे शहर आते हैं लेकिन हालात उन्‍हें सड़कों पर घूमने को मजबूर कर देते हैं। आजाद बताते हैं कि उन्‍होंने सड़कों पर घूमते हुए ऐसे कई लोगों से बातचीत की तो पता चला क‍ि पर‍िजन उनका इलाज कराने लाए मगर बाद में छोड़कर चले गए। वहीं कई ऐसे भी म‍िले जो अपने पर‍िजनों से नाराज थे और उनका ठ‍िकाना सड़क बन गया।

मानस‍िक रोग का इलाज नहीं कराते पर‍िजन

आजाद ने बताया कि ऐसे लोगों की खोज में अक्‍सर वह गोरखपुर, लखनऊ, भोपाल और वाराणसी जाते हैं। इन शहरों में मानस‍िक रोग के डॉक्‍टर अध‍िक हैं। यही कारण है कि इन शहरों में पागल जैसे द‍िखने वाले लोग अध‍िक दिखाई पड़ते हैं। आजाद बताते हैं कि जब भी वह ऐसे लोगों को देखते हैं तो वह उनसे बात करते हैं। इस बातचीत में वह उनके घर, पर‍िवार और शहर के बारे में पूछते हैं।

काउंसल‍िंग के बाद परिजनों से करते हैं संपर्क
आजाद ने बताया कि तकरीबन 1000 से अध‍िक ऐसे लोगों से वह सड़कों पर म‍िल चुके हैं। कई लोगों को उन्‍होंने घर पहुंचाया तो कई ऐसे भी हैं ज‍िन्‍हें जीवन जीना स‍िखाया। वह गुमनामी में खो चुके लोगों की काउंसल‍िंग करने के बाद उनके परिजनों से संपर्क करते हैं। पर‍िवार की सहमत‍ि पर ऐसे लोगों को उनके घर छोड़ द‍िया जाता है। वर्तमान में आजाद के घर में ऐसे ही दो मानस‍िक रोगी रह रहे हैं ज‍िन्‍हें उनके पर‍िजनों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।

स्‍माइल बैंक के ल‍िए कर रहे काम

आजाद पांडेय यूपी में भीख मांगने वाले बच्‍चों के ल‍िए स्‍माइल बैंक चलाते हैं। इस बैंक के जर‍िए वह रेलवे स्‍टेशन और सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्‍चों को पढ़ाते हैं। उनका लक्ष्‍य है प्रदेश से बाल भ‍िक्षा खत्‍म हो।

बच्‍चों के ल‍िए शुरू किया अभ‍ियान

आजाद ने बताया क‍ि सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्‍चों को सही राह पर लाने के ल‍िए जरूरी है कि सड़कों पर घूमने वाले ऐसे पागलों को उनके पर‍िजनों तक पहुंचाया जाए या फ‍िर सही रास्‍ते पर लाया जाए। अक्‍सर सड़कों पर घूमने वाले ऐसे लोग बच्‍चों के करीब आते हैं और अपने फायदे के ल‍िए उन्‍हें क्राइम की तरफ धकेल देते हैं। बच्‍चे भीख मांगने और क्राइम की तरफ न बढ़ें इसके ल‍िए जरूरी है कि सड़कों पर घूमने वाले ऐसे लोगों को सही रास्‍ते पर लाया जाए। आजाद ने बताया कि वह साल 2015 से यह काम कर रहे हैं। इस काम में उनकी स्‍माइल बैंक की पूरी टीम काम करती है।

म‍िले हैं कई अवॉर्ड

यंग अचीवर्स अवॉर्ड 2015 उत्‍तर प्रदेश
यूथ आइकन अवॉर्ड 2016 उत्‍तर प्रदेश
अंतरराष्ट्रीय यूथ कम‍िटी द्वारा नेशनल यूथ आइकन अवॉर्ड 2018
यूथ अवॉर्ड 2018
बिहार सृजन सम्‍मान

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