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दिव्यांग बच्चे ने NEET में किया टॉप

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बेंगलुरु
कर्नाटक में कलबुर्गी के रहने वाले शिवेंद्र सोनाले ने न सिर्फ अपने राज्य का नाम रोशन किया है बल्कि वह एक मिसाल बनकर भी उभरे हैं। बाएं हाथ और पैर से लकवाग्रस्त शिवेंद्र ने NEET (नैशनल ऐलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट) में टॉप किया है। उन्होंने फिजिकल हैंडिकैप्ड कैटिगरी में पहला स्थान हासिल किया है।

पिछड़ा वर्ग से आने वाले शिवेंद्र के परिवार की आर्थिक हालत भी अच्छी नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर इस राष्ट्रीय स्तरीय परीक्षा में 95.6 फीसदी अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया। मुंबई मिरर से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'अगर दिव्यांग भी अपनी शारीरिक कमियों को नज़रअंदाज करते हुए अपनी मेहनत और लगन से प्रयास करें तो उन्हें सफलता जरूर मिलती है। मेरी सफलता इसका स्पष्ट प्रमाण है।'

शिवेंद्र को बेंगलुरु का प्रतिष्ठित BMC (बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज) मिला है। वह बताते हैं कि उनके पिता ने अपनी सारी जमापूंजी उनकी पढ़ाई पर खर्च कर दी। उनकी इस सफलता के बाद उनके घर नेताओं और बधाई देने वालों का तांता लग गया है। शुक्रवार को उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और समाज कल्याण मंत्री एच. आंजनेय से भी मुलाकात की।

शिवेंद्र की सफलता भुनाने में जुटे नेता
हालांकि शिवेंद्र की शानदार सफलता को अब राज्य के नेता भुनाने में जुट गए हैं। जहां एक तरफ सरकार ने उन्हें आर्थिक मदद के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए हैं, वहीं विपक्ष ने सरकार के प्रयास को ढोंग बताते हुए अपनी तरफ से मदद देने का ऐलान किया है।

विपक्षी पार्टी जेडी (एस) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने समाज कल्याण मंत्री आंजनेय पर निशाना साधते हुए कहा, 'सरकार के एक मंत्री जो कि खुद को पिछड़ा वर्ग का मसीहा बताते हैं, और सुधार लाने का दावा करते हैं, उनके पास इस बच्चे की व्यथा सुनने का भी समय नहीं था। शिवेंद्र ने जब उनके पास आर्थिक मदद के लिए हाथ से लिखी चिट्ठी भेजी थी तो उन्होंने यह कहते हुए उसे वापस कर दिया था कि वह उसकी हैंडराइटिंग नहीं पढ़ पा रहे हैं, और टाइप की हुई चिट्ठी भेजने के लिए कह दिया। क्या यही तरीका है किसी पिछड़ावर्ग के जरूरतमंद बच्चे की मदद करने का? वह कहते हैं कि उन्होंने ऐसे बच्चों की मदद के लिए 18 हजार करोड़ रुपये निर्धारित कर रखे हैं।'

कुमार स्वामी ने यह भी दावा किया कि अगर सरकार शनिवार तक कोई ठोस मदद नहीं देती है तो वह अपनी तरफ से अगले पांच सालों तक शिवेंद्र की पढ़ाई का खर्च उठाएंगे।

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