बाराबंकी
किसका मन पढ़ाई में लगता है। किसकी रुचि खेल में है। कौन योग या किसी अन्य विषय को पसंद करता है। बच्चों को किस प्रकार पढ़ाया जाए कि बात समझ में आए और बोर न हों। यह बात बाराबंकी के दरियाबाद ब्लॉक स्थित मियांगंज जूनियर हाई स्कूल के प्रभारी अध्यापक आशुतोष आनंद अवस्थी बेहतर तरीके से जानते हैं। इसी का नतीजा है कि जिले के सैकड़ों शिक्षकों में अलग पहचान बनाने में सफल रहे। आशुतोष का चयन राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए हुआ है।
पांच सितंबर को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में आशुतोष आनंद को सम्मानित किया जाएगा। आशुतोष के पढ़ाने का तरीका ही उन्हें बाकी शिक्षकों से अलग बनाता है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके स्कूल में बच्चों की उपस्थिति 70 फीसदी से अधिक रहती है।
खुद की मेहनत से चमकाया स्कूल
आशुतोष के अनुसार, दस साल पहले तैनाती मिलने के समय पंजीकृत विद्यार्थियों में आधे से भी कम स्कूल आते थे। कई बार मिड डे मील के बाद विद्यार्थियों को तलाशना मुश्किल हो जाता था। कारण जानने के लिए उन्होंने बाल मन को समझना शुरू किया। इसके लिए वे बच्चों के दोस्त बने। पता चला कि कई बच्चों को पढ़ाई का तरीका बोझिल लगता था। कुछ बच्चे दूसरों को देखकर भाग निकलते थे। तमाम बच्चे खेलने के चक्कर में चले जाते थे।
इस पर उन्होंने स्कूल के मैदान को संवारने के साथ ही क्लास में लैपटॉप, डेस्कटॉप, प्रॉजेक्टर जुटाए। कोर्स के साथ ही सामाजिक परिवेश से जोड़कर पढ़ाना शुरू किया। यातायात नियमों की जानकारी देने के साथ ही ग्रामीणों व परिवारीजनों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने का जिम्मा सौंपा। बच्चों की मदद से खतरनाक मोड़ पर संकेतक लगवाए। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाने लगी और स्कूल में बच्चों की उपस्थिति का प्रतिशत बढ़ने लगा। इसके बाद बच्चों की रुचि के अनुसार तीन श्रेणी बनाईं। एक में किताबी ज्ञान, दूसरे में खेल और तीसरे में दोनों पसंद करने वाले बच्चों को रखकर पढ़ाना शुरू किया।
विजुअल से बढ़ी पढ़ाई में रुचि
आशुतोष के अनुसार बच्चे कुछ पढ़ने से ज्यादा देखकर सीखते हैं। ऐसे में विजुअल का इस्तेमाल शुरू किया। स्मार्ट फोन का इस्तेमाल सिखाया और अपने फोन पर विडियो दिखाकर तमाम जानकारी देनी शुरू कीं। इसके बाद तेज बच्चों को बाकी बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा सौंपा। स्कूल परिसर के साथ ही घरों के आसपास भी पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया। स्कूल के पाठयक्रम के क्यूआर कोड को स्कैन कर विजुअल और फिर लैपटाप की मदद से पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे बच्चे रुचि लेने लगे।
दो अनुदेशकों की मदद से बदली तस्वीर
आशुतोष के अनुसार वर्तमान में स्कूल में 207 विद्यार्थी हैं। सबका जिम्मा अकेले शिक्षक आशुतोष और दो अनुदेशकों पर है। इसके बावजूद स्कूल में विद्यार्थियों की उपस्थिति 70 प्रतिशत से कम नहीं होती। आशुतोष के अनुसार यूं तो समस्याएं बहुत हैं। हालांकि उन्होंने मौजूद संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल और बच्चों की रुचि को ध्यान में रखते हुए समाधान तलाशे और आगे बढ़ते गए।
किसका मन पढ़ाई में लगता है। किसकी रुचि खेल में है। कौन योग या किसी अन्य विषय को पसंद करता है। बच्चों को किस प्रकार पढ़ाया जाए कि बात समझ में आए और बोर न हों। यह बात बाराबंकी के दरियाबाद ब्लॉक स्थित मियांगंज जूनियर हाई स्कूल के प्रभारी अध्यापक आशुतोष आनंद अवस्थी बेहतर तरीके से जानते हैं। इसी का नतीजा है कि जिले के सैकड़ों शिक्षकों में अलग पहचान बनाने में सफल रहे। आशुतोष का चयन राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए हुआ है।
पांच सितंबर को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में आशुतोष आनंद को सम्मानित किया जाएगा। आशुतोष के पढ़ाने का तरीका ही उन्हें बाकी शिक्षकों से अलग बनाता है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके स्कूल में बच्चों की उपस्थिति 70 फीसदी से अधिक रहती है।
खुद की मेहनत से चमकाया स्कूल
आशुतोष के अनुसार, दस साल पहले तैनाती मिलने के समय पंजीकृत विद्यार्थियों में आधे से भी कम स्कूल आते थे। कई बार मिड डे मील के बाद विद्यार्थियों को तलाशना मुश्किल हो जाता था। कारण जानने के लिए उन्होंने बाल मन को समझना शुरू किया। इसके लिए वे बच्चों के दोस्त बने। पता चला कि कई बच्चों को पढ़ाई का तरीका बोझिल लगता था। कुछ बच्चे दूसरों को देखकर भाग निकलते थे। तमाम बच्चे खेलने के चक्कर में चले जाते थे।
इस पर उन्होंने स्कूल के मैदान को संवारने के साथ ही क्लास में लैपटॉप, डेस्कटॉप, प्रॉजेक्टर जुटाए। कोर्स के साथ ही सामाजिक परिवेश से जोड़कर पढ़ाना शुरू किया। यातायात नियमों की जानकारी देने के साथ ही ग्रामीणों व परिवारीजनों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने का जिम्मा सौंपा। बच्चों की मदद से खतरनाक मोड़ पर संकेतक लगवाए। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाने लगी और स्कूल में बच्चों की उपस्थिति का प्रतिशत बढ़ने लगा। इसके बाद बच्चों की रुचि के अनुसार तीन श्रेणी बनाईं। एक में किताबी ज्ञान, दूसरे में खेल और तीसरे में दोनों पसंद करने वाले बच्चों को रखकर पढ़ाना शुरू किया।
विजुअल से बढ़ी पढ़ाई में रुचि
आशुतोष के अनुसार बच्चे कुछ पढ़ने से ज्यादा देखकर सीखते हैं। ऐसे में विजुअल का इस्तेमाल शुरू किया। स्मार्ट फोन का इस्तेमाल सिखाया और अपने फोन पर विडियो दिखाकर तमाम जानकारी देनी शुरू कीं। इसके बाद तेज बच्चों को बाकी बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा सौंपा। स्कूल परिसर के साथ ही घरों के आसपास भी पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया। स्कूल के पाठयक्रम के क्यूआर कोड को स्कैन कर विजुअल और फिर लैपटाप की मदद से पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे बच्चे रुचि लेने लगे।
दो अनुदेशकों की मदद से बदली तस्वीर
आशुतोष के अनुसार वर्तमान में स्कूल में 207 विद्यार्थी हैं। सबका जिम्मा अकेले शिक्षक आशुतोष और दो अनुदेशकों पर है। इसके बावजूद स्कूल में विद्यार्थियों की उपस्थिति 70 प्रतिशत से कम नहीं होती। आशुतोष के अनुसार यूं तो समस्याएं बहुत हैं। हालांकि उन्होंने मौजूद संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल और बच्चों की रुचि को ध्यान में रखते हुए समाधान तलाशे और आगे बढ़ते गए।
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