कन्याकुमारी
कन्याकुमारी जिले के मडठट्टूविलई गांव में अगर किसी की मौत हो जाती है तो सबसे पहले चर्च के पादरी को उसकी सूचना दी जाती है। उसके बाद घंटा बजाया जाता है और मौत का ऐलान किया जाता है। इसके साथ ही गांव के युवाओं को यह संदेश मिल जाता है कि मृतक के परिवार को नेत्रदान के लिए तैयार करें। जब परिवार निधन की सूचना देने में व्यस्त होता है तो नेत्र चिकित्सालय की एक टीम गांव में जाकर आंखें निकालकर उनकी जगह आर्टिफिशल आंखें लगा देती है जो बिलकुल असली आंखों सी लगती हैं।
इस गांव में 11 साल में 229 लोग आंखें दान कर चुके हैं। यह गांव नेत्रदान के बारे में जागरूकता फैलाने के मामले में मिसाल बन गया है। हालांकि, यह सफर आसान नहीं था क्योंकि 2007 तक लोग नेत्रदान के लिए कोई तैयार नहीं होता था। चर्च के यूथ ग्रुप के प्रेसिडेंट एफएक्स अरुणो जेवियर ने बताया है कि गांव के बड़े-बुजुर्ग नेत्रदान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि आंखों के बिना वे मृत्यु के बाद भगवान को नहीं देख सकेंगे।
युवा आए आगे
नेत्रदान की अहमियत समझते हुए सेंट सबैस्टियन चर्च के युवाओं ने 2004 से इस बारे में जागरूकता फैलाना शुरू किया। पहले परिवार को नेत्रदान के लिए मनाने में उन्हें तीन साल का वक्त लग गया। उन्होंने बताया कि करीब 1500 लोगों ने एनरोलमेंट कराया जिनमें से ज्यादा लोग युवा थे जबकि जरूरत बुजुर्गों की थी। तब पादरी डॉमिनिक एमके दास और सूजन कुमार ने अपने उपदेशों में इसके बारे में बात करना शुरू किया।
ज्यादातर लोग करते हैं दान
सबसे पहली बार जून 2007 में टी मारिया सबैस्टियन (52) ने सबसे पहले नेत्रदान के लिए हामी भरी। उसी साल 8 नेत्रदान दर्ज किए गए। अब चर्च की ओर से बनाई गई होली फैमिली फेडरेशन नेत्रदान को हैंडल करती है। फेडरेशन के सेक्रटरी वी ऑज्लिन ने बताया कि पहले एक प्राइवेट हॉस्पिटल को आंखें दान की जाती थीं लेकिन उनका स्टाफ आनाकानी करने लगा। उसके बाद हमने तिरुनेवली हॉस्पिटल में दान करना शुरू किया। अब मरने वाले लोगों में से 95% लोग आंखें दान करते हैं।
पूरे जिले में यह पहला गांव बन गया है जहां से पूरा शरीर दान किया गया है। आसपास के गांवों से भी करीब 17 लोग नेत्रदान के लिए प्रेरित हुए हैं। कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके एक से ज्यादा सदस्य नेत्रदान कर चुके हैं। गांव के सबसे युवा सदस्य जे जेफ्लिन इन्फेंसी सिलीसिया और जे जोलिन स्टेफी थे, जिनकी मौत 2014 और 2015 में हो गई थी। उस वक्त वे 15 और 14 साल के थे।
कन्याकुमारी जिले के मडठट्टूविलई गांव में अगर किसी की मौत हो जाती है तो सबसे पहले चर्च के पादरी को उसकी सूचना दी जाती है। उसके बाद घंटा बजाया जाता है और मौत का ऐलान किया जाता है। इसके साथ ही गांव के युवाओं को यह संदेश मिल जाता है कि मृतक के परिवार को नेत्रदान के लिए तैयार करें। जब परिवार निधन की सूचना देने में व्यस्त होता है तो नेत्र चिकित्सालय की एक टीम गांव में जाकर आंखें निकालकर उनकी जगह आर्टिफिशल आंखें लगा देती है जो बिलकुल असली आंखों सी लगती हैं।
इस गांव में 11 साल में 229 लोग आंखें दान कर चुके हैं। यह गांव नेत्रदान के बारे में जागरूकता फैलाने के मामले में मिसाल बन गया है। हालांकि, यह सफर आसान नहीं था क्योंकि 2007 तक लोग नेत्रदान के लिए कोई तैयार नहीं होता था। चर्च के यूथ ग्रुप के प्रेसिडेंट एफएक्स अरुणो जेवियर ने बताया है कि गांव के बड़े-बुजुर्ग नेत्रदान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि आंखों के बिना वे मृत्यु के बाद भगवान को नहीं देख सकेंगे।
युवा आए आगे
नेत्रदान की अहमियत समझते हुए सेंट सबैस्टियन चर्च के युवाओं ने 2004 से इस बारे में जागरूकता फैलाना शुरू किया। पहले परिवार को नेत्रदान के लिए मनाने में उन्हें तीन साल का वक्त लग गया। उन्होंने बताया कि करीब 1500 लोगों ने एनरोलमेंट कराया जिनमें से ज्यादा लोग युवा थे जबकि जरूरत बुजुर्गों की थी। तब पादरी डॉमिनिक एमके दास और सूजन कुमार ने अपने उपदेशों में इसके बारे में बात करना शुरू किया।
ज्यादातर लोग करते हैं दान
सबसे पहली बार जून 2007 में टी मारिया सबैस्टियन (52) ने सबसे पहले नेत्रदान के लिए हामी भरी। उसी साल 8 नेत्रदान दर्ज किए गए। अब चर्च की ओर से बनाई गई होली फैमिली फेडरेशन नेत्रदान को हैंडल करती है। फेडरेशन के सेक्रटरी वी ऑज्लिन ने बताया कि पहले एक प्राइवेट हॉस्पिटल को आंखें दान की जाती थीं लेकिन उनका स्टाफ आनाकानी करने लगा। उसके बाद हमने तिरुनेवली हॉस्पिटल में दान करना शुरू किया। अब मरने वाले लोगों में से 95% लोग आंखें दान करते हैं।
पूरे जिले में यह पहला गांव बन गया है जहां से पूरा शरीर दान किया गया है। आसपास के गांवों से भी करीब 17 लोग नेत्रदान के लिए प्रेरित हुए हैं। कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके एक से ज्यादा सदस्य नेत्रदान कर चुके हैं। गांव के सबसे युवा सदस्य जे जेफ्लिन इन्फेंसी सिलीसिया और जे जोलिन स्टेफी थे, जिनकी मौत 2014 और 2015 में हो गई थी। उस वक्त वे 15 और 14 साल के थे।
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