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देश को 'ट्रेन 18' देने वाले असली हीरोज़ से मिलें

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नई दिल्ली
देश में बनी पहली सेमी हाई स्पीड रेलगाड़ी ट्रेन 18 जल्द ही रफ्तार का दमखम दिखाने के लिए तैयार है। प्रयागराज में लगने वाले कुंभ मेले के दौरान इसे नई दिल्ली से वाराणसी तक चलाने की योजना है। 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली यह ट्रेन देश के लिए बेहद मायने रखती है, जहां सबसे तेज चलने वाली ट्रेन शताब्दी एक्सप्रेस की औसत रफ्तार महज 130 किलोमीटर प्रति घंटा ही है।

इस ट्रेन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे महज डेढ़ साल के रिकॉर्ड समय में तैयार किया गया है, जिसमें विदेशी नहीं देश के ही कुछ इंजिनियरों का दिमाग लगा है। तो आइए जानते हैं, तकनीक के उन धुरंधरों के बारे में जिन्होंने देश को इतनी बड़ी सौगात दी है।

सुधांशु मणि (60), पूर्व महाप्रबंधक, आईसीएफ
भूमिकाः ट्रेन 18 की परिकल्पना तैयार की, इसे रेलवे बोर्ड से मंजूरी दिलाई और रिकॉर्ड 18 महीने में जमीन पर खड़ा कर दिया


ऑर्ट कलेक्शन के प्रति जुनून रखने वाले लखनऊ निवासी रेलवे के एक अधिकारी के सुपुत्र मणि आईआईटी कानपुर में मेटलर्जिकल इंजिनियरिंग के लिए चुने गए थे, लेकिन उन्होंने बिहार के जमालपुर स्थित रेलवे इंस्टिट्यूट ऑफ मैकेनिकल ऐंड इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग से मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई को तवज्जो दी। इस संस्थान के नौ साल के अनुभव ने उन्हें ट्रेन 18 जैसे अत्याधुनिक ट्रेन को मूर्त रूप देने में बेहद मदद की।

सुभ्रांशु (55), प्रिंसिपल चीफ मैकेनिकल इंजिनियर, आईसीएफ
भूमिकाः प्रॉजेक्ट का क्रियान्वयन और समय पर डिलीवरी


रीडिंग और बिलियर्ड्स में रुचि रखने वाले पटना निवासी सुभ्रांशु इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ मैकेनिकल इंजिनियर्स (IRSME) के अधिकारी हैं। ट्रेनिंग और टेक्निक्ल कोलाबोरेशन के लिए इन्होंने यूरोप और अमेरिका का व्यापक दौरा किया। ट्रेन 18 की तैयारी की निगरानी करने के अलावा, वह इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) के निर्यात उपक्रम पर भी नजर रखते हैं, जिसके तहत रेलवे कोच को श्रीलंका, बांग्लादेश और कुछ अफ्रीकी देशों में निर्यात किया जाता है।

देबी प्रसाद दास (55), चीफ डिजाइन इंजिनियर-इलेक्ट्रिकल
भूमिकाः परियोजना का क्रियान्वयन और समय पर डिलीवरी


1987 बैच के IRSEE के अधिकारी दास ओडिशा के जसपुर के निवासी हैं तथा योग और स्कूलों में पढ़ाने में बेहद दिलचस्पी रखते हैं। धाराप्रवाह तमिल बोलने वाले दास ने 23 साल तमिलनाडु में बिताए हैं। उन्होंने और नौ इलेक्ट्रिकल डिजाइनरों की उनकी टीम ने ट्रेन 18 के हाई पीकअप को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो महज 182 सेकेंड में 160 किलोमीटर की रफ्तार पकड़ लेती है।

एस. श्रीनिवास (54), चीफ डिजाइन इंजिनियर मैकेनिकल
भूमिकाः ट्रेन के विभिन्न कल-पुर्जों को डिजाइन करने के लिए 50 इंजिनियरों के टीम का नेतृत्व किया


1986 बैच के IRSME अधिकारी श्रीनिवास आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के रहने वाले हैं। उनकी पहली पोस्टिंग असम में हुई थी। आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजिनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री लेने वाले श्रीनिवास को आरडीएसओ में सात साल का अनुभव है, जिसने उन्हें अत्याधुनिक ट्रेन टेक्नॉलजी के बारे में बारीकियों की पर्याप्त जानकारी मिली। उनकी टीम वर्तमान में राजधानी एक्सप्रेस के ट्रेन 18 संस्करण के डिजाइन पर काम कर रही है।

मनीष प्रधान (50), चीफ वर्कशॉप इंजिनियर-फर्निशिंग
भूमिकाः वर्कशॉप मैनेजमेंट और ट्रेन 18 की आंतरिक साज-सज्जा


IRSME के 1991 बैच के अधिकारी प्रधान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले हैं। रेलवे जॉइन करने से पहले उन्होंने कुछ वक्त के लिए NTPC और ONGC में भी काम किया। वर्तमान में प्रधान ट्रेन 18 के दूसरे और तीसरे सेट के निर्माण को लेकर वर्कशॉप को संभाल रहे हैं।

ट्रेन 18 के बारे में अहम तथ्यः दिसंबर 2018 में ट्रेन-18 ने अपना ट्रायल सफलता पूर्वक पूरा कर लिया था। टेस्ट रन के दौरान इसे इलाहाबाद से कानपुर के बीच चलाया गया था। ट्रेन-18 ने अपने ट्रायल के दौरान सुपरफास्ट स्पीड 180 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार को आसानी से पास किया था।


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