शिखा पाण्डेय, लखनऊ
सड़क हादसे में घायल दोस्त ने आंखों के सामने दम तोड़ दिया। खून से लथपथ दोस्त को बाहों में लिए मनोज को मदद न मिलने पर महसूस हुई बेबसी ने झझकोर कर रख दिया। बात फरवरी 1991 की है। रात करीब 10 बज कोहरे से ढकी रात में जानकीपुरम निवासी प्रमोद तिवारी कैंट होते हुए घर जा रहे थे। इस दौरान तेज रफ्तार अज्ञात वाहन टक्कर मारते हुए भाग निकला। देर रात तक प्रमोद के घर न पहुंचने पर मनोज सिंह चौहान तलाश में निकले। बचपन का दोस्त रास्ते में खून से लथपथ मिला। बचाने में नाकाम रहने पर उन्होंने घायलों की मदद करने की ठानी। तब से शुरू हुआ सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है। मनोज अब तक 60 लोगों की जान बचा चुके हैं।
मनोज बताते हैं कि हादसे में घायल दोस्त दो घंटे तक सड़क पर तड़पता रहा, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। इस दौरान उसने दो बार आंखें भी खोलीं, लेकिन खून अधिक बहने के कारण कुछ बोल नहीं सका। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह अधिक खून बहना बताया गया। मनोज को लगा कि अगर किसी ने उनके दोस्त को समय से अस्पताल पहुंचाने में मदद की होती तो उसकी जान बच जाती। इसके बाद उन्होंने घायलों को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही हरसंभव मदद का संकल्प लिया था। पिछले 27 साल में अब तक करीब 60 लोगों की जान बचा चुके मनोज दूसरों को भी जरूरतमंदों की मदद करने की अपील करते हैं।
'मिलता है दिली सुकून'
मनोज बताते हैं कि सड़क हादसे में घायल होने वालों में कई ठीक होने के बाद मिलने आते हैं। इस दौरान उनके शुक्रिया अदा करने से ऐसा दिली सुकून मिलता है, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हर बार मदद पर उन्हें अपने दोस्त का चेहरा नजर आता है। मनोज का कहना है कि भले ही प्रमोद को नहीं बचा सका, लेकिन दूसरों को बचाकर ही उसे खोने की तकलीफ को कम करने की कोशिश करता हूं।
छात्रों को देते हैं मददगार बनने का सबक
अर्जुनगंज निवासी मनोज पेशे से शिक्षक हैं। इंदिरानगर में कोचिंग क्लासेज चलाने वाले मनोज का कहना है कि सब्जेक्ट पढ़ाने के साथ ही बच्चों को दूसरों की मदद करने की भी शिक्षा देते हैं। कई बच्चे उनकी मुहिम में मदद करने लगे हैं।
सड़क हादसे में घायल दोस्त ने आंखों के सामने दम तोड़ दिया। खून से लथपथ दोस्त को बाहों में लिए मनोज को मदद न मिलने पर महसूस हुई बेबसी ने झझकोर कर रख दिया। बात फरवरी 1991 की है। रात करीब 10 बज कोहरे से ढकी रात में जानकीपुरम निवासी प्रमोद तिवारी कैंट होते हुए घर जा रहे थे। इस दौरान तेज रफ्तार अज्ञात वाहन टक्कर मारते हुए भाग निकला। देर रात तक प्रमोद के घर न पहुंचने पर मनोज सिंह चौहान तलाश में निकले। बचपन का दोस्त रास्ते में खून से लथपथ मिला। बचाने में नाकाम रहने पर उन्होंने घायलों की मदद करने की ठानी। तब से शुरू हुआ सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है। मनोज अब तक 60 लोगों की जान बचा चुके हैं।
मनोज बताते हैं कि हादसे में घायल दोस्त दो घंटे तक सड़क पर तड़पता रहा, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। इस दौरान उसने दो बार आंखें भी खोलीं, लेकिन खून अधिक बहने के कारण कुछ बोल नहीं सका। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह अधिक खून बहना बताया गया। मनोज को लगा कि अगर किसी ने उनके दोस्त को समय से अस्पताल पहुंचाने में मदद की होती तो उसकी जान बच जाती। इसके बाद उन्होंने घायलों को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही हरसंभव मदद का संकल्प लिया था। पिछले 27 साल में अब तक करीब 60 लोगों की जान बचा चुके मनोज दूसरों को भी जरूरतमंदों की मदद करने की अपील करते हैं।
'मिलता है दिली सुकून'
मनोज बताते हैं कि सड़क हादसे में घायल होने वालों में कई ठीक होने के बाद मिलने आते हैं। इस दौरान उनके शुक्रिया अदा करने से ऐसा दिली सुकून मिलता है, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हर बार मदद पर उन्हें अपने दोस्त का चेहरा नजर आता है। मनोज का कहना है कि भले ही प्रमोद को नहीं बचा सका, लेकिन दूसरों को बचाकर ही उसे खोने की तकलीफ को कम करने की कोशिश करता हूं।
छात्रों को देते हैं मददगार बनने का सबक
अर्जुनगंज निवासी मनोज पेशे से शिक्षक हैं। इंदिरानगर में कोचिंग क्लासेज चलाने वाले मनोज का कहना है कि सब्जेक्ट पढ़ाने के साथ ही बच्चों को दूसरों की मदद करने की भी शिक्षा देते हैं। कई बच्चे उनकी मुहिम में मदद करने लगे हैं।
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