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पैरों में जूते तक नहीं, फिर भी जीते मेडल

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बिजू बाबू, बेंगलुरु
बेंगलुरु विश्वविद्यालय ऐथलेटिक्स मीट में सरकारी कॉलेजों के बच्चों ने साबित कर दिया कि प्रतिभा और लगन हो तो कोई कमी आड़े नहीं आ सकती। गुरुवार को खत्म हुए 53वें ऐथलेटिक्स मीट में कम से कम 30 ऐथलीट ऐसे थे जो बिना जूतों के दौड़े और इसके बावजूद भी मेडल जीता।

शारीरिक शिक्षा के एक टीचर ने बताया कि पोडियम पर मेडल पाने वाले 30 से ज्यादा ऐथलीट तीन दिन तक चले इस इवेंट में नंगे पैर दौड़े। एक कोच ने बताया, 'सिंथेटिक ट्रैक पर बिना जूतों के दौड़ना खतरनाक होता है, इससे चोट लगने की आशंका बढ़ जाती है। आर्टिफिशल सतह पर दौड़ने में घुटनों के मुड़ने या फिसलने का खतरा होता है। ज्यादातक ऐथलीट्स गरीब घरों से हैं और महंगे स्पाइक्स नहीं खरीद सकते।'

बिना जूतों के दौड़ना ऐथलीट्स के लिए नया नहीं है। 5000 मीटर, 4X400 मीटर रिले में गोल्ड और 1,500 मीटर रेस में ब्रॉन्ज जीतने वाली चित्रा ने कहा, 'मेरे पास अच्छे जूते नहीं हैं, इसलिए मैं सिर्फ मोजे पहनकर दौड़ी।'

संबंधित अधिकारियों से यह पूछने पर कि स्टूडेंट्स से किट के नाम पर ली जाने वाली फीस के बावजूद उनके पास जूते क्यों नहीं हैं, उन्होंने कहा, 'कई कॉलेजों में 300-400 तक स्टूडेंट्स हैं। ऐसे में एक के हिस्से में 180 रुपये तक आते हैं, जो पर्याप्त नहीं हैं।'

बेंगलुरु विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा निदेशक टी लिंगाराजू ने कहा कि वह ऐथलीट्स को नंगे पांव दौड़ते नहीं देखना चाहते और जल्द इसके लिए कॉलेजों के फंड से उनकी मदद की जाएगी।

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