साक्षी रावत, गुड़गांव
नवरात्र में हम आपको गुड़गांव की ऐसी महिलाओं से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने अपनी शक्ति पहचानी और हिम्मत व लगन से एक मुकाम पाया। साथ ही दूसरों के लिए भी सहारा बनीं। आज बता रहे हैं डॉ. शालिनी मल्होत्रा (44) की कहानी। उन्होंने इन्वाइरनमेंट स्टडी में पीएचडी की है। जॉब के बेहतरीन ऑप्शन छोड़कर शालिनी ने बच्चों की शिक्षित करने का काम चुना। वह आज 300 बच्चों को फ्री शिक्षा दे रही हैं।
स्कूल खोला तो हुआ विरोध
शालिनी बताती हैं कि उन्होंने स्कूल की शुरुआत छोटे-छोटे 2 कमरों से की थी, लेकिन स्कूल को लेकर आसपास के लोगों ने आपत्ति जताई, क्योंकि सोसायटी का कहना था कि इससे माहौल खराब हो रहा है। इसी के चलते जो जगह उन्होंने रेंट पर ली थी उसकी लीज भी कैंसल करवा दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने ही किसी जानकार से जमीन किराये पर ली। उसमें 12 कमरे बनाए। अब वहां पहली से लेकर 12वीं तक के बच्चों को शिक्षा मिल रही है। शालिनी का कहना है कि मैं विरोध के बाद भी पीछे नहीं हटी और डटकर सामना किया।
संस्था बनाकर दे रहीं शिक्षा
शालिनी का कहना है कि उन्होंने गुड़गांव में कंस्ट्रक्शन साइटों पर मजदूरों के बच्चों को यूं ही घूमते देखा। इसके बाद उन्होंने ठाना कि वह उन्हें शिक्षित करेंगी। गॉल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड पर शालिनी ने 2007 में नीव संस्था बनाई। यहां 35 लोगों का स्टाफ है। 10वीं और 12वीं के छात्रों को ओपन के जरिए बोर्ड एग्जाम दिलाए जाते हैं। साथ ही वहीं से वोकेशनल कोर्सेज भी कराए जाते हैं। उसकी फीस वह खुद ही भरती हैं।
फैमिली व कंपनियों का मिला सपॉर्ट
शालिनी का कहना है कि उनके दो बेटे 14 और 19 साल के हैं। वे दोनों उन्हें काफी सपॉर्ट करते हैं। साथ ही पति का साथ भी उन्हें भरपूर मिला। उन्होंने बताया कि जहां तक स्कूल के लिए फंड की बात है तो वह उन्हें कॉरपोरेट कंपनियों के सीएसआर फंड से मिल जाता है।
नवरात्र में हम आपको गुड़गांव की ऐसी महिलाओं से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने अपनी शक्ति पहचानी और हिम्मत व लगन से एक मुकाम पाया। साथ ही दूसरों के लिए भी सहारा बनीं। आज बता रहे हैं डॉ. शालिनी मल्होत्रा (44) की कहानी। उन्होंने इन्वाइरनमेंट स्टडी में पीएचडी की है। जॉब के बेहतरीन ऑप्शन छोड़कर शालिनी ने बच्चों की शिक्षित करने का काम चुना। वह आज 300 बच्चों को फ्री शिक्षा दे रही हैं।
स्कूल खोला तो हुआ विरोध
शालिनी बताती हैं कि उन्होंने स्कूल की शुरुआत छोटे-छोटे 2 कमरों से की थी, लेकिन स्कूल को लेकर आसपास के लोगों ने आपत्ति जताई, क्योंकि सोसायटी का कहना था कि इससे माहौल खराब हो रहा है। इसी के चलते जो जगह उन्होंने रेंट पर ली थी उसकी लीज भी कैंसल करवा दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने ही किसी जानकार से जमीन किराये पर ली। उसमें 12 कमरे बनाए। अब वहां पहली से लेकर 12वीं तक के बच्चों को शिक्षा मिल रही है। शालिनी का कहना है कि मैं विरोध के बाद भी पीछे नहीं हटी और डटकर सामना किया।
संस्था बनाकर दे रहीं शिक्षा
शालिनी का कहना है कि उन्होंने गुड़गांव में कंस्ट्रक्शन साइटों पर मजदूरों के बच्चों को यूं ही घूमते देखा। इसके बाद उन्होंने ठाना कि वह उन्हें शिक्षित करेंगी। गॉल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड पर शालिनी ने 2007 में नीव संस्था बनाई। यहां 35 लोगों का स्टाफ है। 10वीं और 12वीं के छात्रों को ओपन के जरिए बोर्ड एग्जाम दिलाए जाते हैं। साथ ही वहीं से वोकेशनल कोर्सेज भी कराए जाते हैं। उसकी फीस वह खुद ही भरती हैं।
फैमिली व कंपनियों का मिला सपॉर्ट
शालिनी का कहना है कि उनके दो बेटे 14 और 19 साल के हैं। वे दोनों उन्हें काफी सपॉर्ट करते हैं। साथ ही पति का साथ भी उन्हें भरपूर मिला। उन्होंने बताया कि जहां तक स्कूल के लिए फंड की बात है तो वह उन्हें कॉरपोरेट कंपनियों के सीएसआर फंड से मिल जाता है।
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