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सलाम! मुश्किलों से लड़कर पेश की मिसाल

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विशेष संवाददाता, नई दिल्ली
आदमी की पहचान मुश्किल समय में होती है। मुश्किल वक्त में तमाम बाधाओं से पार पाते हुए जो न केवल जीवन पथ पर आगे बढ़ता है, बल्कि अपनी अलग पहचान बनाता है, वही सही मायने में विजेता होता है। ऐसे ही विजेताओं को केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति इरानी ने सम्मानित किया।

खास बात यह है कि ये सभी महिलाएं हैं, जिन्होंने समय की धाराओं को चीरते हुए अपने लिए समाज और दुनिया में नई पहचान बनाई। यही कारण है कि अब दुनिया उनको नमन कर रही है। उनका विशिष्ट सम्मान कर रही है।

सुभासिनी की कहानी
सुभासिनी मिस्त्री ने पति को जल्दी ही खो दिया था। आर्थिक रूप से सम्पन्न न होने के कारण सुभासिनी पति का इलाज अच्छे तरीके से नहीं करवा पाई थीं। पति की मौत के बाद एक समय तो सुभासिनी को लगा कि अब इस दुनिया में रहना बेकार है। अचानक एक दिन उसके जेहन में यह बात आई कि न जाने कितने लोग इस दुनिया में हैं, जो आर्थिक तंगी के कारण अपना इलाज सही तरीके से नहीं करवा पाते। तब उन्होंने ठान लिया कि वह ऐसे लोगों की मदद करेंगी। फिर क्या था, सुभासिनी ने इस कार्य की शुरुआत की।

पश्चिम बंगाल की रहने वाली सुभासिनी ने NBT से बातचीत में कहा, 'पहले लगा कि यह काम मुश्किल है। मगर धीरे-धीरे सब तरफ से जब मुझे मदद मिलने लगी तो लगा कि जीवन में कुछ भी करना मुश्किल नहीं है, बस एक लगन चाहिए, एक उद्देश्य चाहिए। घरों में काम करते हुए न केवल मैंने अपने बेटे को पढ़ाया, बल्कि अस्पताल बनाने के काम में जुटी रहीं। अब सुभासिनी ने अपने बेटे की मदद से 45 बिस्तरों वाले अस्पताल बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। इस अस्पताल में गरीबों का इलाज बेहद सस्ते में किया जाता है।'

सोच बदलने का काम
सफीना हुसैन की कहानी भी इससे जुदा नहीं है। सफीना को इस बात का अहसास हुआ कि समाज में लोग लड़कियों को पढ़ाने में यकीन नहीं रखते। लड़कियों को लेकर गांवों में सोच काफी दयनीय है। ऐसे में उन्होंने ठान लिया कि समाज की इस सोच को बदलने का काम करेंगी। इसके लिए उन्होंने एनजीओ बनाई। लोगों को जब उसकी सोच और कार्य का पता लगा तो ज्यादा तादाद में लोग उनसे जुड़ने लगे। सफीना कहती हैं कि हम सबके मन में कुछ करने की चाहत है, बस हमें जरा साहस दिखाना होगा। जब मैंने गांवों में जाकर लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करना शुरू किया तो वे इतनी खुश हुईं जैसे कि उनकी बरसों की कोई चाह पूरी हो गई हो।

शीमा को भी सलाम
शीमा मोडेक भी ऐसी ही साहसी महिला हैं। उन्होंने अपने आसपास देखा कि गरीबी और मजबूरी के कारण लोग अपने बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते। उन्होंने घरों में जाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। फिर क्या था, लोग भी उनके इस काम में सहयोग करने लगे। अब शीमा के पास पूरी टीम है, जो निस्वार्थ भावना से बच्चों को पढ़ाने में जुटी है। शीमा कहती हैं कि हम सबको अपने बारे में नहीं, बल्कि समाज के बारे में भी सोचना चाहिए।

इसके अलावा लक्ष्मी अग्रवाल, कमल कुभार, अरुणिमा सिन्हा, जमुना टुडू, राजलक्ष्मी भोरतकुर, किरण कन्नौजिया, कनिका टेकरीवाल को भी समाज के प्रति उल्लेखनीय काम के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि ये महिलाएं समाज के लिए आदर्श हैं। ये आर्थिक रूप से इतनी सम्पन्न नहीं हैं, फिर भी इन्होंने समाज के उन लोगों के लिए काम का जिम्मा लिया, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर हैं। ये देश के रीयल हीरो हैं।

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